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बेस्ट माशूक़ शायरी

इश्क़ माशूक़ इश्क़ आशिक़ है

यानी अपना ही मुब्तला है इश्क़

मीर तक़ी मीर

इक हम हैं कि हम ने तुम्हें माशूक़ बनाया

इक तुम हो कि तुम ने हमें रक्खा कहीं का

मुज़्तर ख़ैराबादी

है आशिक़ माशूक़ में ये फ़र्क़ कि महबूब

तस्वीर-ए-तफ़र्रुज है वो पुतला है अलम का

जुरअत क़लंदर बख़्श

ख़ल्वत हो और शराब हो माशूक़ सामने

ज़ाहिद तुझे क़सम है जो तू हो तो क्या करे

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

आशिक़ हैं ज़माने में माशूक़

इधर हम रह गए हैं और उधर आप

सख़ी लख़नवी

मा'शूक़ कौन सा है हो दिल में जिस की याद

इस मुख़्तसर से बाग़ में किस गुल की बू नहीं

रशीद लखनवी

मर्तबा माशूक़ का आशिक़ से बाला-दस्त है

ख़ार की जा ज़ेर-ए-पा गुल का मकाँ दस्तार पर

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

मिल गया था बाग़ में माशूक़ इक नक-दार सा

रंग रू में फूल की मानिंद सज में ख़ार सा

आबरू शाह मुबारक

समझ ले आशिक़ माशूक़ की हम-आग़ोशी

अज़ाब और तो क्या क़ब्र के फ़िशार में था

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

रिआयत बूझ तू माशूक़ का जौर

कि तुझ को इश्क़ में कामिल करे है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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