सर्दी शायरी
सर्दी पर शेर सर्दी का मौसम बहुत रूमान-पर्वर होता है। इस में सूरज की शिद्दत और आग की गर्मी भी मज़ा देने लगती है। एक मौसम जिस में ये दोनों शिद्दतें अपना असर ज़ाएल कर दें और लुत्फ़ देने लगें आशिक़ के लिए एक और तरह की बे-चैनी पैदा कर देता है कि उस के वजूद की शिद्दतें कम होने के बजाए और बढ़ जाती हैं। सर्दी के मौसम को और भी कई ज़ावियों से शायरों में बर्ता गया है। हमारा ये इंतिख़ाब पढ़िए।
अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में
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गर्मी लगी तो ख़ुद से अलग हो के सो गए
सर्दी लगी तो ख़ुद को दोबारा पहन लिया
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लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए
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सख़्त सर्दी में ठिठुरती है बहुत रूह मिरी
जिस्म-ए-यार आ कि बेचारी को सहारा मिल जाए
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इतनी सर्दी है कि मैं बाँहों की हरारत माँगूँ
रुत ये मौज़ूँ है कहाँ घर से निकलने के लिए
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सर्दी है कि इस जिस्म से फिर भी नहीं जाती
सूरज है कि मुद्दत से मिरे सर पर खड़ा है
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ये सर्दियों का उदास मौसम कि धड़कनें बर्फ़ हो गई हैं
जब उन की यख़-बस्तगी परखना तमाज़तें भी शुमार करना
शाम ने बर्फ़ पहन रक्खी थी रौशनियाँ भी ठंडी थीं
मैं इस ठंडक से घबरा कर अपनी आग में जलने लगा