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साहिर देहल्वी के 10 बेहतरीन शेर

पंडित अमरनाथ साहिर दिल्ली में कश्मीरी पंडित समुदाय के प्रमुख कवियों में एक महत्वपूर्ण नाम। अपनी रचनाओं में सूफ़ीवाद और वेदांत रहस्यवाद के संयोजन के लिए चर्चित।

परी-रू तिरे दीवाने का ईमाँ क्या है

इक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ पे क़ुर्बां होना

साहिर देहल्वी

क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम

ना-ख़ुदा हुस्न है और इश्क़ है लंगर अपना

साहिर देहल्वी

था अनल-हक़ लब-ए-मंसूर पे क्या आप से आप

था जो पर्दे में छुपा बोल उठा आप से आप

साहिर देहल्वी

ग़म-ए-मौजूद ग़लत और ग़म-ए-फ़र्दा बातिल

राहत इक ख़्वाब है जिस की कोई ताबीर नहीं

साहिर देहल्वी

अहद-ए-मीसाक़ का लाज़िम है अदब वाइ'ज़

है ये पैमान-ए-वफ़ा रिश्ता-ए-ज़ुन्नार तोड़

साहिर देहल्वी

मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद

हुस्न ने किया बे-ख़ुद इश्क़ ने किया आज़ाद

साहिर देहल्वी

जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब

मिरा मशरब है रिंदी रिंद को मज़हब से क्या मतलब

साहिर देहल्वी

मैं दीवाना हूँ और दैर-ओ-हरम से मुझ को वहशत है

पड़ी रहने दो मेरे पाँव में ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना

साहिर देहल्वी

यूँ तो हर दीन में है साहब-ए-ईमाँ होना

हम को इक बुत ने सिखाया है मुसलमाँ होना

साहिर देहल्वी

अज़ल से हम-नफ़सी है जो जान-ए-जाँ से हमें

पयाम दम-ब-दम आता है ला-मकाँ से हमें

साहिर देहल्वी

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