- पुस्तक सूची 187358
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1974
जीवन शैली22 औषधि917 आंदोलन298 नॉवेल / उपन्यास4722 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी13
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर64
- दीवान1460
- दोहा55
- महा-काव्य109
- व्याख्या199
- गीत71
- ग़ज़ल1185
- हाइकु12
- हम्द46
- हास्य-व्यंग36
- संकलन1598
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात691
- माहिया19
- काव्य संग्रह5068
- मर्सिया386
- मसनवी836
- मुसद्दस58
- नात559
- नज़्म1251
- अन्य75
- पहेली16
- क़सीदा189
- क़व्वाली18
- क़ित'अ62
- रुबाई297
- मुख़म्मस17
- रेख़्ती13
- शेष-रचनाएं27
- सलाम33
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई30
- अनुवाद74
- वासोख़्त26
अहमद जमाल पाशा के हास्य-व्यंग्य
यूनीवर्सिटी के लड़के
साहब लड़कों की तो आजकल भरमार है। जिधर देखिए लड़के ही लड़के नज़र आते हैं। गोया ख़ुदा की क़ुदरत का जलवा यही लड़के हैं। घर अंदर लड़के, घर बाहर लड़के, पास पड़ोस में लड़के, मुहल्ला मुहल्ला लड़के, गाँव और शहरों में लड़के, सूबे और मुल्क में लड़के, ग़रज़ ये कि दुनिया भर में
दफ़्तर में नौकरी
हमने दफ़्तर में क्यों नौकरी की और छोड़ी, आज भी लोग पूछते हैं मगर पूछने वाले तो नौकरी करने से पहले भी पूछा करते थे। “भई, आख़िर तुम नौकरी क्यों नहीं करते?” “नौकरी ढूंडते नहीं हो या मिलती नहीं?” “हाँ साहब, इन दिनों बड़ी बेरोज़गारी है।” “भई,
अदीबों की क़िस्में
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अगर राय शुमारी की जाये तो नव्वे फ़ीसदी अदीब निकलेगा बाक़ी दस फ़ीसदी पढ़ा लिखा, लेकिन अगर शोअरा हज़रात के सिलसिले में गिनती गिनी जाये तो पता चलेगा कि पूरा आवे का आवा ही टेढ़ा है। अब ज़रा ये भी सोचिए कि राय शुमारी करने वाले अमले
सितम ईजाद क्रिकेट और मैं बेचारा
मैं क्रिकेट से इसलिए भागता हूँ कि इसमें खेलना कम पड़ता है और मेहनत ज़्यादा करना पड़ती है। सारी मेहनत पर उस वक़्त पानी फिर जाता है जब खेलने वाली एक टीम हार जाती है। ईमान की बात है कि हमने “साइंस” को हमेशा रश्क की नज़रों से देखा मगर कभी उस मज़मून से दिल न
join rekhta family!
-
बाल-साहित्य1974
-