- Index of Books 181733
-
-
Book Categories
-
Children's Literature1653
Medicine565 Movements257 Novel3434 -
Book Categories
- Bait Bazi9
- Catalogue / Index5
- Couplets62
- Deewan1333
- Doha61
- Epics92
- Exegesis149
- Geet86
- Ghazal750
- Haiku11
- Hamd32
- Humorous38
- Intikhab1387
- Keh mukarni7
- Kulliyat635
- Mahiya16
- Majmua4001
- Marsiya332
- Masnavi680
- Musaddas44
- Naat425
- Nazm1009
- Others46
- Paheli14
- Qasiida143
- Qawwali9
- Qit'a51
- Quatrain256
- Quintuple18
- Rekhti17
- Remainders27
- Salaam28
- Sehra8
- shahr-Ashob, Hajw, Zatal Nama13
- Tareekh-Goi19
- Translation80
- Wasokht24
Shafiqur Rahman
Short story 2
Quote 8
ये मर्द ऐवरेस्ट पर चढ़ जाएँ, समंदर की तह तक पहुँच जाएँ, ख़्वाह कैसा ही ना-मुमकिन काम क्यों न कर लें, मगर औ'रत को कभी नहीं समझ सकते। बाज़-औक़ात ऐसी अहमक़ाना हरकत कर बैठते हैं कि अच्छी भली मोहब्बत नफ़रत में तबदील हो जाती है, और फिर औ'रत का दिल... एक ठेस लगी और बस गया। जानते हैं कि हसद और रश्क तो औ'रत की सरिशत में है। अपनी तरफ़ से बड़े चालाक बनते हैं मगर मर्द के दिल को औ'रत एक ही नज़र में भाँप जाती है।
अ'जीब सी बात है कि लोग मोटे ताज़े आदमियों को मुहब्बत से मुस्तस्ना क़रार देते हैं। वो ये तसव्वुर में ला ही नहीं सकते कि एक इंसान जिसका वज़्न अढ़ाई मन से ज़ियादा हो जिसकी दो ठोड़ियाँ हों, जिसकी तोंद तुलूअ' हो रही हो, उसके दिल में भी मुहब्बत का जज़्बा समा सकता है। उ'मूमन यही सोचा जाता है कि इस साइज़ और इस नंबर के आदमी हमेशा खाने पीने की चीज़ों के मुतअल्लिक़ सोचते रहते हैं। चुनाँचे एक फ़र्बा ख़ातून को सुरीली आवाज़ में दर्दनाक गाना गाते देखकर बजाए रोने के हँसी आती है और दिल में यही ख़याल आता है कि अब ये गाना गा कर फ़ौरन एक भारी सा नाश्ता तनावुल फ़रमाएँगी और चंद डकारें लेने के बाद मज़े से सो जाएँगी। उठेंगी तो फिर खाएँगी।
अगर इसी तरह हर बात में ग़रीब समाज को क़सूरवार ठहराया गया तो वो दिन दूर नहीं जब किसी को बुख़ार चढ़ेगा तो वो मुँह बिसूर कर कहेगा कि ये समाज का क़सूर है। कोई कमज़ोर हुआ तो कहेगा कि ये समाज की बुराई है और अगर कोई बहुत मोटा हो गया तो भी समाज ही को कोसा जाएगा। ना-लायक़ लड़के इम्तिहान में फ़ेल होने की वजह समाज की खोखली बुनियादों को क़रार देंगे। यहां तक कि गालियां भी यूं दी जाएँगी कि “ख़ुदा करे तुझ पर समाज का ज़ुल्म टूटे।”
अक्सर हज़रात अफ़साने को पढ़ने से पहले सफ़हात को जल्दी से उलट-पलट कर देखते हैं और अगर उन्हें कहीं समाज का लफ़्ज़ नज़र आ जाए तो वो फ़ौरन अफ़साना छोड़ देते हैं। पूछा जाए कि ये क्यों? तो जवाब मिलता है, “जनाब इसका प्लाट तो पहले ही मा'लूम हो गया। यक़ीन न हो तो सुन लीजिए!” इसके बाद वो प्लाट भी सुना देंगे जो क़रीब क़रीब सही ही निकलेगा।
Tanz-o-Mazah 14
BOOKS 51
More Authors From "Rawalpindi"
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
GET YOUR PASS
-
Children's Literature1653
-