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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अख़तर बस्तवी

1940 - 1998 | गोरखपुर, भारत

शायर और गद्यकार, अपने क़तआत और लम्बी नज़्मों के लिए विख्यात

शायर और गद्यकार, अपने क़तआत और लम्बी नज़्मों के लिए विख्यात

अख़तर बस्तवी

ग़ज़ल 3

 

नज़्म 49

अशआर 3

आसाँ नहीं इंसाफ़ की ज़ंजीर हिलाना

दुनिया को जहाँगीर का दरबार समझो

बरसों से इस में फल नहीं आए तो क्या हुआ

साया तो अब भी सहन के कोहना शजर में है

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कीजिए किस किस से आख़िर ना-शनासी का गिला

जब किसी ने भी निगाह-ए-मो'तबर डाली नहीं

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क़ितआ 10

पुस्तकें 23

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