अंजुम आज़मी
ग़ज़ल 14
नज़्म 28
अशआर 13
आओ ख़ुश हो के पियो कुछ न कहो वाइज़ को
मय-कदे में वो तमाशाई है कुछ और नहीं
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क्यूँ हुआ मुझ को इनायत की नज़र का सौदा
आज रुस्वाई ही रुस्वाई है कुछ और नहीं
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कोई तो ख़ैर का पहलू भी निकले
अकेला किस तरह ये शर रहेगा
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ख़ाक ने कितने बद-अतवार किए हैं पैदा
ये न होते तो उसी ख़ाक से क्या क्या होता
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निकलो भी कभी सूद-ओ-ज़ियाँ से वर्ना
कूचे में तिरे कौन भला आएगा
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