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असर सहबाई

1901 - 1963

प्रसिद्ध शायर, रूमान और सामाजिक चेतना की नज़्में,ग़ज़लें और रुबाईयाँ कहीं

प्रसिद्ध शायर, रूमान और सामाजिक चेतना की नज़्में,ग़ज़लें और रुबाईयाँ कहीं

असर सहबाई

ग़ज़ल 6

नज़्म 1

 

अशआर 9

तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए

तुम्हारे दर्द को सीने से हूँ लगाए हुए

ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का

गोया छलक रहा है पियाला शराब का

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जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू

वो आफ़्ताब में है है माहताब में

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सारी दुनिया से बे-नियाज़ी है

वाह मस्त-ए-नाज़ क्या कहना

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तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना

मेरे जुनूँ ने भर दिए रंग तिरी शबाब में

नअत 1

 

पुस्तकें 9

 

Recitation

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