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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अशफ़ाक़ आमिर

ग़ज़ल 24

नज़्म 8

अशआर 4

अपनी ख़ुशी से मुझे तेरी ख़ुशी थी अज़ीज़

तू भी मगर जाने क्यूँ मुझ से ख़फ़ा हो गया

ये रोग लगा है अजब हमें जो जान भी ले कर टला नहीं

हर एक दवा बे-असर गई हर एक दुआ बे-असर हुई

अब ए'तिबार पे जी चाहता तो है लेकिन

पुराने ख़ौफ़ दिलों से कहाँ निकलते हैं

ये रात ऐसी हवाएँ कहाँ से लाती है

कि ख़्वाब फूलते हैं और ज़ख़्म फलते हैं

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