इब्न-ए-सफ़ी
अशआर 11
चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है
चाँद पर चाँदनी नहीं होती
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लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ
लिक्खी न जा सकी मगर अपनी ही दास्ताँ
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हुस्न बना जब बहती गंगा
इश्क़ हुआ काग़ज़ की नाव
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ज़मीन की कोख ही ज़ख़्मी नहीं अंधेरों से
है आसमाँ के भी सीने पे आफ़्ताब का ज़ख़्म
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दिल सा खिलौना हाथ आया है
खेलो तोड़ो जी बहलाओ
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ग़ज़ल 9
नज़्म 1
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