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माजिद देवबंदी

1964 | दिल्ली, भारत

माजिद देवबंदी

ग़ज़ल 5

 

अशआर 8

अफ़सोस जिन के दम से हर इक सू हैं नफ़रतें

हम ने तअल्लुक़ात उन्हीं से बढ़ा लिए

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जिस को चाहें बे-इज़्ज़त कर सकते हैं

आप बड़े हैं आप को ये आसानी है

याद रक्खो इक इक दिन साँप बाहर आएँगे

आस्तीनों में उन्हें कब तक छुपाया जाएगा

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फिर तुम्हारे पाँव छूने ख़ुद बुलंदी आएगी

सब दिलों पर राज कर के ताज-दारी सीख लो

इन आँसुओं की हिफ़ाज़त बहुत ज़रूरी है

अँधेरी रात में जुगनू भी काम आते हैं

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पुस्तकें 4

 

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