aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नादिया अंबर लोधी

ग़ज़ल 14

नज़्म 7

अशआर 5

हुसैन रिफ़अतें तक़्सीम करता है अब भी

यज़ीद आज भी रुस्वाइयाँ समेटता है

पा-ब-जौलाँ तो हर इक शख़्स यहाँ है 'अम्बर'

तिरी ज़ंजीर ही क्यूँ शोर बपा करती है

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बस चंद हम-ख़याल हैं 'अम्बर' मुझे अज़ीज़

बेहिस जम्म-ए-ग़फ़ीर नहीं चाहिए मुझे

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'अम्बर' उस के बीते कल का क़िस्सा हूँ मैं

फिर काहे का शौक़ कि उस को याद भी हूँ मैं

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ज़िंदा रहते हैं क्या ये काफ़ी नहीं

कोई लाज़िम है कि फिर ख़ुश भी हों

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कहानी 4

 

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