1940 | इस्लामाबाद, पाकिस्तान
पाकिस्तान में अग्रणी शायरों में शामिल, अपनी सांस्कृतिक रूमानियत के लिए मशहूर।
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ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
Angrezi Par Urdu Ka Asar
1997
अक़्लीम-ए-हुनर
इफ़्तिख़ार अारिफ़: शख़्सियत-ओ-फ़न्न
2003
Bachon Ki Lughat
1995
देहली के अख़बारात-ओ-रिसाइल
2009
Faiz Banam Iftikhar Arif
2011
Farhang-e-Mushtarak
फ़ीचर, कॉलम और तब्सिरा
1998
Harf-e-Bariyab
1996
Ilm-e-Arooz Aur Urdu Shairi
Jahan-e-Maloom
2005
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे
अजब तरह का है मौसम कि ख़ाक उड़ती है वो दिन भी थे कि खिले थे गुलाब आँखों में
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते मैं अपने आप से अब सुल्ह करना चाहता हूँ
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