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निदा फ़ाज़ली

1938 - 2016 | मुंबई, भारत

महत्वपूर्ण आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार। अपनी ग़ज़ल ' कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ' के लिए प्रसिद्ध

महत्वपूर्ण आधुनिक शायर और फ़िल्म गीतकार। अपनी ग़ज़ल ' कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता ' के लिए प्रसिद्ध

निदा फ़ाज़ली के दोहे

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बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान

अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान

घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव

वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव

नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान

कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान

वो सूफ़ी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान

जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार

दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार

सीधा-साधा डाकिया जादू करे महान

एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान

मुझ जैसा इक आदमी मेरा ही हमनाम

उल्टा सीधा वो चले मुझे करे बद-नाम

सब की पूजा एक सी अलग अलग हर रीत

मस्जिद जाए मौलवी कोयल गाए गीत

नैनों में था रास्ता हृदय में था गाँव

हुई पूरी यात्रा छलनी हो गए पाँव

मैं भी तू भी यात्री चलती रुकती रेल

अपने अपने गाँव तक सब का सब से मेल

चिड़िया ने उड़ कर कहा मेरा है आकाश

बोला शिकरा डाल से यूँही होता काश

उस जैसा तो दूसरा मिलना था दुश्वार

लेकिन उस की खोज में फैल गया संसार

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