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नियाज़ सुल्तानपुरी

1954 | सुल्तानपुर, भारत

नियाज़ सुल्तानपुरी

ग़ज़ल 15

दोहा 5

क़द्रें सब बूढ़ी हुईं मानवता नीलाम

चोर-उचक्कों को करें बड़े बड़े प्रणाम

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बादल के स्थान पर बरसे है बारूद

मीज़ाइल के अह्द में नहीं कोई बहबूद

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बादल सब रुख़्सत हुए मानसून के संग

इस कारन से आज है सारी ख़िल्क़त तंग

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मानवता क्या चीज़ है क्या है शिष्टाचार

ख़ूब पनपता आज-कल लाशों का ब्योपार

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समबिधान के क़त्ल पर हुई अदालत मौन

बहस छिड़ी ऐवान में इस पर दोषी कौन

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पुस्तकें 6

 

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