aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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तफ़ज़ील अहमद

ग़ज़ल 14

अशआर 2

फ़ुरात-ए-चश्म पे है कर्बला की तुग़्यानी

दरून-ए-कूफ़ा-ए-दिल ईद करने आया हूँ

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क्या शय है खींच लेती है शब को सर-ए-फ़लक

फिर सुब्ह जोड़ती है दोबारा ज़मीन से

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