ताहिर फ़राज़
ग़ज़ल 17
नज़्म 1
अशआर 1
जेल से वापस आ कर उस ने पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ी
मुँह भी बंद हुए सब के और बदनामी भी ख़त्म हुई
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