वफ़ा नक़वी
ग़ज़ल 36
अशआर 18
ज़मीं उठेगी नहीं आसमाँ झुकेगा नहीं
अना-परस्त हैं दोनों के ख़ानदान बहुत
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छुपा रहता है दस्त-ए-आरज़ू ख़ुद्दार लोगों का
बड़ी मुश्किल से अपनी ज़ात का इज़हार करते हैं
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बस एक पल की तमन्ना-ए-वस्ल की ख़ातिर
तमाम 'उम्र लगा दी गई सँवरने में
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