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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

वफ़ा नक़वी

ग़ज़ल 36

अशआर 18

ज़मीं उठेगी नहीं आसमाँ झुकेगा नहीं

अना-परस्त हैं दोनों के ख़ानदान बहुत

एक ही रंग में जीने का हुनर सीखा है

हम से हर बात पे चेहरा नहीं बदला जाता

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इस भीड़ में दुनिया की हम तुम बिछड़ जाएँ

मैं तुम पे नज़र रक्खूँ तुम मुझ पे नज़र रखना

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छुपा रहता है दस्त-ए-आरज़ू ख़ुद्दार लोगों का

बड़ी मुश्किल से अपनी ज़ात का इज़हार करते हैं

बस एक पल की तमन्ना-ए-वस्ल की ख़ातिर

तमाम 'उम्र लगा दी गई सँवरने में

कहानी 2

 

पुस्तकें 1

 

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