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वहीद अर्शी

1943 - 1986 | कोलकाता, भारत

वहीद अर्शी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 4

दिल का सारा दर्द सिमट आया है मेरी पलकों में

कितने ताज-महल डूबेंगे पानी की इन बूँदों में

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भाग चलूँ यादों के ज़िंदाँ से अक्सर सोचा लेकिन

जब भी क़स्द किया तो देखा ऊँची है दीवार बहुत

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ग़म-ए-हयात की कीलें थीं दस्त-ओ-पा में जड़ीं

तमाम उम्र रहे हम सलीब पर लटके

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अरमाँ के ताबूत में जब मैं वक़्त की कीलें गाड़ चुकूँगा

फिर जब भी तुम याद आओगे बह जाओगे अश्कों में

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पुस्तकें 1

 

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