वज़ीर अली सबा लखनवी की टॉप 20 शायरी
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
बैठे बैठे हमें क्या जानिए क्या याद आया
बात भी आप के आगे न ज़बाँ से निकली
लीजिए आए थे हम सोच के क्या क्या दिल में
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कहते हैं मेरे दोस्त मिरा हाल देख कर
दुश्मन को भी ख़ुदा न करे मुब्तला-ए-इश्क़
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आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार
वो इब्तिदा-ए-रंज है ये इंतिहा-ए-रंज
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कलेजा काँपता है देख कर इस सर्द-मेहरी को
तुम्हारे घर में क्या आए कि हम कश्मीर में आए
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मेरे बग़ल में रह के मुझी को क्या ज़लील
नफ़रत सी हो गई दिल-ए-ख़ाना-ख़राब से
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साकिन-ए-दैर हूँ इक बुत का हूँ बंदा ब-ख़ुदा
ख़ुद वो काफ़िर हैं जो कहते हैं मुसलमाँ मुझ को
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रोज़ ओ शब फ़ुर्क़त-ए-जानाँ में बसर की हम ने
तुझ से कुछ काम न ऐ गर्दिश-ए-दौराँ निकला
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का'बे की सम्त सज्दा किया दिल को छोड़ कर
तो किस तरफ़ था ध्यान हमारा किधर गया
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उल्फ़त-ए-कूचा-ए-जानाँ ने किया ख़ाना-ख़राब
बरहमन दैर से का'बे से मुसलमाँ निकला
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची
हुई न चश्मा-ए-हैवाँ से फ़ैज़-याब घटा
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ख़ुद-रफ़्तगी है चश्म-ए-हक़ीक़त जो वा हुई
दरवाज़ा खुल गया तो मैं घर से निकल गया
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