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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये बात समझ में आई नहीं
बाजी के मियाँ क्या बाजा हैं
वो हँस हँस कर ये कहने लगीं