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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक अर्ज़-ए-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतें
तिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए