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नज़्म
आवारा
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ताज-महल
ये चमन-ज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर ओ दीवार ये मेहराब ये ताक़
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
ज़ुल्मत को ज़िया सरसर को सबा बंदे को ख़ुदा क्या लिखना
ऐ मेरे वतन के फ़नकारो ज़ुल्मत पे न अपना फ़न वारो
ये महल-सराओं के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो
हबीब जालिब
नज़्म
बंजारा-नामा
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा नैन-सुख और मलमल
चलवन पर्दे फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
नौ-जवान ख़ातून से
तिरे ज़ेर-ए-नगीं घर हो महल हो क़स्र हो कुछ हो
मैं ये कहता हूँ तू अर्ज़-ओ-समा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
मर्सिया
बे-मिस्ल-ए-हसीं है निगह-ए-अहल-ए-यकीं में
बस एक ये ख़ुर्शीद है अफ़्लाक ओ ज़मीं में