aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "نش"
नून मीम राशिद
1910 - 1975
शायर
नून मीम दनिश
born.1958
नक़्श लायलपुरी
1928 - 2017
महेश चंद्र नक़्श
1923 - 1980
मक़बूल नक़्श
died.2005
मुज़फ़्फ़र ईरज
1944 - 2021
रफ़ीक़ अहमद नक़्श
1959 - 2013
कृष्ण सोनी निशा
लेखक
सय्यद शराफ़त नाैशाही
प्रथम बुकस, नई दिल्ली
पर्काशक
मीम नून सईद
सय्यद तबारक अली नक़्श बन्दी
शोबा-ए-नश्र-ओ-इशाअत जामिया चिश्तिया ख़ानक़ाह हज़रत शैखुल आलम रुदौली शरीफ, फैज़ाबाद
नदीम नक़्श जिवरी
born.1995
शोबा-ए-नश्र-ओ-इशाअत, सीतामढ़ी
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तोरस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँगमैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
रेख़्ता ने अपने पाठकों के अनुभव से, प्राचीन और आधुनिक कवियों की उन पुस्तकों का चयन किया है जो सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं.
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नशنش
Coffin, Corpse
कुल्लियात-ए-राशिद
कुल्लियात
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Apna Gareban Chaak
जावेद इक़बाल
आत्मकथा
Urdu ki Ibtidai Nash-o-Numa mein Sufiya-e-Kiram ka Kaam
मौलवी अब्दुल हक़
शोध / समीक्षा
Kulliyat-e-Nafeesi
अबू अली सीना
औषिधि
Noon Meem Rashid: Ek Mutala
जमील जालिबी
नज़्म तन्क़ीद
Agar Ab Bhi Na Jage To
शम्श नवेद उसमानी
अनुवाद
Dastak Na Do
अल्ताफ़ फ़ातिमा
ऐतिहासिक
Ajaibaat-e-Farang
यूसुफ़ खां कम्बल पोश
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
नई उर्दू क़वाइद
इस्मत जावेद
भाषा विज्ञान
Jo Maine Dekha
राव अब्दुल रशीद
इंटरव्यू / साक्षात्कार
Kashf-ul-Haqaiq
नव तर्ज़-ए-मुरस्सा
मीर मोहम्मद हुसैन अता ख़ान तहसीन
दास्तान
Barg-e-Nai
नासिर काज़मी
काव्य संग्रह
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ेंफ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दियावर्ना हम भी आदमी थे काम के
वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब थाआने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
न जी भर के देखा न कुछ बात कीबड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
न ये कि हुस्न-ए-ताम होन देखने में आम सी
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
अभी-अभी मेरे बच्चे ने मेरे बाएं हाथ की छंगुलिया को अपने दाँतों तले दाब कर इस ज़ोर का काटा कि मैं चिल्लाए बग़ैर ना रह सका और मैंने गु़स्सो में आकर उसके दो, तीन तमांचे भी जड़ दिए बेचारा उसी वक़्त से एक मासूम पिल्ले की तरह चिल्ला रहा है।...
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
आग की क़ुर्मुज़ ज़बाँ पर इम्बिसात-ए-नौ के रागदिल मिरे सहरा-नवर्द-ए-पीर दिल
उन दरस-गहों में वो आया न नज़र हम कोक्या नक़ल करूँ ख़ूबी उस चेहरा किताबी की
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