aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "अदद"
अदा जाफ़री
1924 - 2015
शायर
अब्दुल हमीद अदम
1909 - 1981
अदम गोंडवी
1947 - 2011
अब्दुल अहद साज़
1950 - 2020
असद भोपाली
1921 - 1990
असद अली ख़ान क़लक़
1820 - 1879
सुबहान असद
born.1982
असद मोहम्मद ख़ाँ
born.1932
लेखक
अमित अहद
born.1981
बेगम सुल्ताना ज़ाकिर अदा
born.1929
एजाज़ असद
born.1986
असद रिज़वी
born.1956
असद रज़ा सहर
अलमदार अदम
असद आवान
born.1972
ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरीकोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम
ख़ुश्क दीवार में सीलन का सबब क्या होगाएक अदद ज़ंग लगी कील थी तस्वीर के बा'द
ज़िंदगी को है ज़रूरत मेरीऔर ज़रूरत भी अशद है, हद है
ये परी-चेहरा लोग कैसे हैंग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है
मिर्ज़ा का तख़ल्लुस कई ग़ज़लों में असद है और अक्सर में ग़ालिब। इससे पढ़े लिखे लोगों को शक हो चला था कि मिर्ज़ा का दीवान दो मुख़्तलिफ़ शायरों के कलाम का मजमूआ है लेकिन हमारे नए तज़्किरा नवीसों ने बज़ोर-ए-क़लम साबित कर दिया है कि ग़ालिब और असद दरअसल एक...
ख़ुदा-ए-सुख़न कहे जाने वाले मीर तक़ी मीर उर्दू अदब का वो रौशन सितारा हैं, जिन्होंने नस्ल-दर-नस्ल शायरों को मुतास्सिर किया. यहाँ उनकी ज़मीन पर लिखी गई चन्द ग़ज़लें दी जा रही हैं, जो मुख़्तलिफ़ शायरों ने उन्हें खिराज पेश करते हुए कही.
२०२२ ख़त्म हुआ आप लोगों ने उर्दू ज़बान-ओ -अदब और शाइरी से भरपूर मुहब्बत का इज़हार किया है । इस कलेक्शन में हम उन 10 नज़्मों को पेश कर रहे हैं जो रेख़्ता पर सबसे ज़्यादा पढ़ी गईं हैं।
सौ चर्चित दक्कनी अदब पर आधारित पुस्तकों का चयन.
अददعدد
figure, number
संख्या, अंक, मात्रा, तादाद
संख्या, अंक, तादाद, मात्रा।
तारीख़-ए-अदब-ए-उर्दू
जमील जालिबी
इतिहास
उर्दू अदब की तारीख़
ज़ियाउर्रहमान सिद्दीक़ी
उर्दू अदब की मुख़्तसर तरीन तारीख़
सलीम अख़्तर
तारीख़-ए-अदब अरबी
अहमद हसन ज़य्यात
उमराव जान अदा
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
सामाजिक
उर्दू अदब में तन्क़ीद की अहमियत
क़य्यूम सादिक़
आलोचना
तारीख़-ए-अदब -ए-उर्दू
राम बाबू सकसेना
सर सय्यद अहमद खाँ और उन का अहद
सुरैया हुसैन
शोध
जदीद अरबी अदब के इर्तिक़ा में महजरी उदबा की ख़िदमात
अशफ़ाक़ अहमद नदवी
एक भाषा: दो लिखावट, दो अदब
ज्ञान चंद जैन
अदब और नफ़्सियात
देवेन्द्र इस्सर
अदब की समाजियात
मैनेजर पाण्डेय
अदा-ए-कुफ़्र
मुनव्वर लखनवी
संकलन
Mohammad Arabi
मोहम्मद इनायतुल्लाह असद सुबहानी
इस्लामियात
बात कहाँ से कहाँ जा पहुंची। वर्ना सर-ए-दस्त मुझे उन ख़ुशनसीब जवाँ मर्गों से सरोकार नहीं जो जीने के क़रीने और मरने के आदाब से वाक़िफ़ हैं। मेरा ताल्लुक़ तो उस मज़लूम अक्सरियत से है जिसको बक़ौल शायर, जीने की अदा याद, न मरने की अदा याद...
जो अहद ही कोई न होतो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थीं। नदियों में बतखें तैर रही थीं। ट्रेन के एक डिब्बे में पाँच मुसाफ़िर चुप-चाप बैठे थे। एक बूढ़ा जो खिड़की...
नूर जहाँ की आवाज़ में अब वो लोच, वो रस, वो बचपना और वो मासूमियत नहीं रही जो कि उसके गले की इम्तियाज़ी ख़ुसूसियत थी। लेकिन फिर भी नूर जहाँ, नूर जहाँ है। गो लता मंगेशकर की आवाज़ का जादू आज कल हर जगह चल रहा है। अगर कभी नूर...
जम्मू तवी के रास्ते कश्मीर जाइए तो कुद के आगे एक छोटा सा पहाड़ी गांव बटोत आता है। बड़ी पुरफ़िज़ा जगह है। यहां दिक़ के मरीज़ों के लिए एक छोटा सा सिनेटोरियम है। यूं तो आज से आठ नौ बरस पहले बटोत में पूरे तीन महीने गुज़ार चुका हूँ, और...
बांदी का निकाह हो जाए चाहे ना हो, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। कोई सुर्ख़ाब के पर नहीं लग जाते। ख़ानदानी नवाब ज़ादियाँ मर जाएंगी साथ ना बिठाएँगी। क़ाज़ी के दो बोलों में इतना दम दुरूद नहीं कि चटानों में सुराख़ कर दें या दाल रोटी के सवाल को हल कर...
मैं जो मुहरर्म में सारा-सारा दिन और आधी रात बाहर गुज़ारा करता था इस साल बाहर जाने का नाम न लेता था और बहाने ढूँढ-ढूँढ कर अंदर मंडलाया करता था। नौवीं की रात साल भर में वाहिद रात होती थी, जब हमारे घर की बीबियाँ बस्ती में ज़ियारत को निकलती...
बच्चे की ज़िंदगी का शायद ही कोई लम्हा ऐसा गुज़रता हो जब उसके लिए किसी न किसी क़िस्म का शोर ज़रूरी न हो। अक्सर औक़ात तो वो ख़ुद ही सामेआ’ नवाज़ी करते रहते हैं वर्ना ये फ़र्ज़ उनके लवाहिक़ीन पर आ’इद होता है। उनको सुलाना हो तो लोरी दीजिए। हँसाना...
आपका बाबू गोपी नाथ बज़ाहिर बुद्धू था लेकिन दर-असल बहुत होशियार और बाख़बर आदमी था। मेरा सादिक़ अंदर बाहर से बिल्कुल एक जैसा था। वो बुद्धू था न चालाक... दरमियाने दर्जे की अक़्ल-ओ-फ़हम का आदमी था। अपने कामों में आठों गांठ होशियार। हसब का पक्का। लेकिन दीन के मुआमले में...
ये बताने की ज़रूरत नहीं कि जब उसने मुझे मिसेज़ चोखे बनाकर रसीद दी तो मैंने उसके मुँह पर अपना बटवा मअ एक अदद मोटी किताब के खींच मारा और ये सब कुछ हुआ सिर्फ़ एक शौहर की ख़ातिर......
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