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ग़ज़ल
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
जावेद अख़्तर
नज़्म
परछाइयाँ
कि आरज़ू के कँवल खिल के फूल हो जाएँ
दिल-ओ-नज़र की दुआएँ क़ुबूल हो जाएँ
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
'फ़ानी' जिस में आँसू क्या दिल के लहू का काल न था
हाए वो आँख अब पानी की दो बूँदों को तरसती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
आँखों देखी क्या बतलाएँ हाल अजब कुछ देखा है
दुख की खेती कितनी हरी और सुख का जैसे काल कहो