aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "गुलज़ार"
गुलज़ार
born.1936
शायर
गुलज़ार देहलवी
1926 - 2020
गुलज़ार बुख़ारी
born.1949
हिज्र मोमिन
born.2005
जमाल पानीपती
1927 - 2005
गुलज़ार मुरादाबादी
born.1988
गुलज़ार वफ़ा चौधरी
गुलनार आफ़रीन
born.1942
गुलज़ार अहमद
लेखक
गुलनाज़ कौसर
अहसन गुलफ़ाम
born.1998
राहुल गुज्जर
born.1990
मुहिउद्दीन गुल्फ़ाम
born.1989
गुलज़ार जावेद
गुलनाज़ ख़ान
आप के बा'द हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
दौर हंगामा-ए-गुलज़ार से यकसू बैठेतेरे दीवाने भी हैं मुंतज़िर-ए-हू बैठे
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोईजैसे एहसाँ उतारता है कोई
आइना देख कर तसल्ली हुईहम को इस घर में जानता है कोई
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हाक़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
प्रमुख फि़ल्म निर्माता और निर्देशक, गीतकार और कहानीकार मिर्ज़ा गालिब पर टीवी सीरियल के लिए प्रसिद्ध साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
शायरी में सब्र आशिक़ का सब्र है जो तवील बहर को विसाल की एक मौहूम सी उम्मीद पर गुज़ार रहा होता है और माशूक़ उस के सब्र का बराबर इम्तिहान लेता रहता है। ये अशआर आशिक़ और माशूक़ के किर्दार की दिल-चस्प जेहतों का इज़हारिया हैं।
अपनी फ़िक्र और सोच के धारों से गुज़र कर कुल्ली तौर से किसी एक नतीजे तक पहुंचना एक ना-मुम्किन सा अमल होता है। हम हर लम्हा एक तज़-बज़ुब और एक तरह की कश-मकश के शिकार रहते हैं। ये तज़-बज़ुब और कशमकश ज़िंदगी के आम से मुआमलात से ले कर गहरे मज़हबी और फ़लसफ़ियाना अफ़्कार तक छाई हुई होती है। ईमाँ मुझे रोके हैं जो खींचे है मुझे कुफ़्र इस कश-मकश की सबसे वाज़ेह मिसाल है। हमारे इस इन्तिख़ाब में आपको कश्मकश की बेशुमार सूरतों को बहुत क़रीब से देखने, महसूस करने और जानने का मौक़ा मिलेगा।
गुलज़ारگلزار
garden, bed of roses
a bed ot roses, a garden
गुलज़ारگل زار
गुलज़ार-ए-नसीम
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
मसनवी
मिर्ज़ा ग़ालिब
नाटक / ड्रामा
Pichchle Panne
अफ़साना
Rawi Par
Kulliyat-e-Gulzar Dehlvi
कुल्लियात
Dhuan
Aandhi
हक़ीक़त-ए-गुलज़ार साबरी
शाह मोहम्मद हसन साबरी चिशती
चिश्तिय्या
गुलज़ार-ए-दबिस्तान
शैख़ सादी शीराज़ी
भाषा
मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम
गुलज़ार-ए-ग़म
सय्यद हुसैन मिर्ज़ा लख़नवी
मर्सिया
Gulzar-e-Ghazal
काव्य संग्रह
गुलज़ार-ए-दानिश
सयय्द हैदर बख़्श हैदरी
दास्तान
गुलज़ार-ए-दाग़
दाग़ देहलवी
दीवान
शाम से आँख में नमी सी हैआज फिर आप की कमी सी है
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँउन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक करआदत इस की भी आदमी सी है
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करतेवक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
आदतन तुम ने कर दिए वादेआदतन हम ने ए'तिबार किया
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँउस ने सदियों की जुदाई दी है
आप के ब'अद हर घड़ी हम नेआप के साथ ही गुज़ारी है
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती हैज़िंदगी एक नज़्म लगती है
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