aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "फला"
फ़ना बुलंदशहरी
शायर
फ़ना निज़ामी कानपुरी
1922 - 1988
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
1923 - 2009
परवीन फ़ना सय्यद
1936 - 2010
लाल चन्द फ़लक
1887 - 1967
हीरा लाल फ़लक देहलवी
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
born.1983
इफ़्तिख़ार फलक काज़मी
born.1992
हुमा फ़लक
लेखक
सुलेमान शिकोह गर्डर फ़ना
1831 - 1902
फ़ज़ा आज़मी
born.1930
फ़ज़ा जालंधरी
1905 - 1968
अब्दुल अज़ीज़ फ़लक पैमा
1879 - 1951
फ़ज़ला जावेद
मजीद फ़ज़ा
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता हैसितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं
फला-फूला रहे या-रब चमन मेरी उमीदों काजिगर का ख़ून दे दे कर ये बूटे मैं ने पाले हैं
“फ़लाँ से आँखें लड़ा रही थीं, ढिमाके से तुम्हारा तअ'ल्लुक़ है?”तब मुमानी सन्नाटे में रह जातीं। मोटे-मोटे आँसू छलक उठते, अलगनी से दुपट्टा घसीट कर वो अपना जिस्म ढक कर, सर झुकाए कमरे में चली जातीं। मामूँ का कलेजा कट जाता, उनके पैरों तले से ज़मीन खिसक जाती। वो उनके तलवे चूमते, उनके क़दमों में सर फोड़ते, उनके आगे नाक रगड़ते, रोने लगते। “मैं कमीना हूँ, हराम-ज़ादा हूँ, जूती लेकर जितने चाहो मरो। मेरी जान, मेरी रुख़ी, मेरी मल्लिका, शहज़ादी।”
वजह यह कि हर एक अपने अपने काम में लगा रहता है। शाम के वक़्त हॉस्टल के सहन में जाबजा तलबा इ’ल्मी मबाहिसों में मशग़ूल नज़र आते हैं। अलस्सबह हर एक तालिब-ए-इ’ल्म किताब हाथ में लिये हॉस्टल के चमन में टहलता नज़र आता है। खाने के कमरे में, कॉमन रूम में, गुस्ल ख़ानों में, बरआमदों में, हर जगह लोग फ़लसफ़े और रियाज़ी और तारीख़ की बातें करते हैं। जिनको अदब-ए-अं...
एक दिन एक देहाती बुढ़िया जो पास के किसी गाँव में रहती थी, इस बस्ती की ख़बर सुन कर आ गई। उसके साथ एक ख़ुर्द साल लड़का था। दोनों ने मस्जिद के क़रीब एक दरख़्त के नीचे घटिया सिगरेट, बीड़ी, चने और गुड़ की बनी हुई मिठाईयों का ख़्वाँचा लगा दिया। बुढ़िया को आए अभी दो दिन भी न गुज़रे थे कि एक बूढ़ा किसान कहीं से एक मटका उठा लाया और कुंएँ के पास ईंटों का एक छोटा सा चब...
नए साल की आमद को लोग एक जश्न के तौर पर मनाते हैं। ये एक साल को अलविदा कह कर दूसरे साल को इस्तिक़बाल करने का मौक़ा होता है। ये ज़िंदगी के गुज़रने और फ़ना की तरफ़ बढ़ने के एहसास को भूल कर एक लमहाती सरशारी में महवे हो जाता है। नए साल की आमद से वाबस्ता और भी कई फ़िक्री और जज़्बाती रवय्ये हैं, हमारा ये इंतिख़ाब इन सब पर मुश्तमिल है।
सूफ़ीवाद ने उर्दू शायरी को कई तरह से विस्तार दिया है और प्रेम के रंगों को सूफ़ीयाना-इश्क़ के संदर्भों में स्थापित किया है। असल में इशक़ में फ़ना का तसव्वुर, इशक़-ए-हक़ीक़ी से ही आया है। इसके अलावा हमारे जीवन की स्थिरता, हमारी सहिष्णुता और मज़हबी कट्टरपन की जगह सहनशीलता का परिचय आदि ने सूफ़ीवाद के माध्यम से भी उर्दू शायरी को माला-माल किया है। दिलचस्प बात ये है कि तसव्वुफ़ ने जीवन के हर विषय को प्रभावित किया जिसके माध्यम से शायरों ने कला की अस्मिता को क़ायम किया। आधुनिक युग के अंधकार में सूफ़ीवाद से प्रेरित शायरी का महत्व और बढ़ जाता है।
वहम एक ज़हनी कैफ़ियत है और ख़याल-ओ-फ़िक्र का एक रवैया है जिसे यक़ीन की मुतज़ाद कैफ़ियत के तौर पर देखा जाता है। इन्सान मुसलसल ज़िंदगी के किसी न किसी मरहले में यक़ीन-ओ-वहम के दर्मियान फंसा होता है। ख़याल-ओ-फ़िक्र के ये वो इलाक़े हैं जिनसे वास्ता तो हम सब का है लेकिन हम उन्हें लफ़्ज़ की कोई सूरत नहीं दे पाते। ये शायरी पढ़िए और उन लफ़्ज़ों में बारीक ओ नामालूम से एहसासात की जलवागरी देखिए।
फलाپھلا
puffed, blossomed
Deewan-e-Fana
दीवान
Fana Nizami
संकलन
Hindustan Ki Kahani Mr Keir Hardie Ki Zabani
भारत का इतिहास
अातिश फ़शाँ पर ख़िले गुलाब
आसिफ़ फर्ऱुखी
अफ़साना
कुल्लियात-ए-फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
कुल्लियात
Harf-e-Wafa
प्रवीन सय्यद फ़ना
महिलाओं की रचनाएँ
Mahabharat
हिन्दू-मत
Tamanna Ka Doosra Qadam
काव्य संग्रह
42 Nazmein Ek Riwayat Ek Baghawat
मोहम्मद सदरुद्दीन फ़ज़ा शम्सी
शायरी तन्क़ीद
25 Nazmein Ek Nazriya Ek Tajraba
फ़ज़ा इबन-ए-फ़ैज़ी शख़सियत और फ़न
हदीस अंसारी
शोध
Chand Maqalat-e-Shibli
आलोचना
Kulliyat-e-Faza Ibn-e-Faizi
ग़ज़ल
Shola-e-Neem Soz
फ़लक़-ए-अासार
प्रीतपाल सिंह बेताब
वह कह रहे थे कि ख़ुदा ग़रीक़-ए-रहमत करे, मरहूम ने इतनी लम्बी उम्र पाई कि उनके क़रीबी अइ'ज़्ज़ा दस-पंद्रह साल से उनकी इंशोरेंस पालिसी की उम्मीद में जी रहे थे। उन उम्मीदवारों में बेश्तर को मरहूम ख़ुद अपने हाथ से मिट्टी दे चुके थे। बक़िया को यक़ीन हो गया था कि मरहूम ने आब-ए-हयात न सिर्फ़ चखा है बल्कि डुगडुगा के पी चुके हैं। रावी ने तो यहाँ तक बयान किया कि अज़-बस कि मरहूम शुरू से रख रखाव के हद दर्जा क़ाएल थे, लिहाज़ा आख़िर तक इस सेहत बख़्श अ'क़ीदे पर क़ायम रहे कि छोटों को ता'ज़ीमन पहले मरना चाहिए। अल्बत्ता इधर चंद बर्सों से उनको फ़लक-ए-कज रफ़्तार से ये शिकायत हो चला थी कि अफ़सोस अब कोई दुश्मन ऐसा बाक़ी नहीं रहा, जिसे वह मरने की बददुआ दे सकें।
कब तक इसे सींचोगे तमन्ना-ए-समर मेंये सब्र का पौदा तो न फूला न फला है
अब्बा कहने लगे, "ओफ़्फ़ो! मेरा तो मतलब है कि जहाँ लड़की जवान हुई बर्तन बजने लगे। बाज़ार के उस मोड़ तक ख़बर हो जाती है कि फ़लाँ घर में लड़की जवान हो चुकी है। मगर देखो न हमारी सज्जादह में ये बात नहीं।" मैंने अब्बा की बात सुनी और मेरा दिल खौलने लगा। "बड़ी आई है। सज्जादा जी हाँ! अपनी बेटी जो हुई।" उस वक़्त मेरा जी चाहता था कि जा कर बावर्चीख़ाने में बैठी हुई आपा ...
ख़त पढ़ कर मेरी हैरत की कोई इंतिहा न रही लेकिन जब ठंडे दिल से इस बात पर ग़ौर किया तो रफ़्ता रफ़्ता बाशिंदगान-ए-मुरीदपुर की मर्दुम-शनासी का क़ायल हो गया।मैं एक कमज़ोर इंसान हूँ और फिर लीडरी का नशा एक लम्हे ही में चढ़ जाता है। उस लम्हे के अंदर मुझे अपना वतन बहुत ही प्यारा मा’लूम होने लगा। अहल-ए-वतन की बे-हिसी पर बड़ा तरस आया। एक आवाज़ ने कहा कि इन बे-चारों की बहबूद और रहनुमाई का ज़िम्मेदार तू ही है। तुझे ख़ुदा ने तदब्बुर की क़ुव्वत बख़्शी है। हज़ार-हा इंसान तेरे मुंतज़िर हैं। उठ कि सैकड़ों लोग तेरे लिए मा-हज़र लिए बैठे होंगे। चुनांचे मैंने मुरीदपुर की दा’वत क़ुबूल कर ली और लीडराना अंदाज़ में ब-ज़रिया-ए-तार इत्तिला दी कि पंद्रह दिन के बाद फ़लां ट्रेन से मुरीदपुर पहुंच जाऊंगा। स्टेशन पर कोई शख़्स न आये। हर एक शख़्स को चाहिए कि अपने-अपने काम में मसरूफ़ रहे। हिंदुस्तान को इस वक़्त अ’मल की ज़रूरत है।
इसके बा'द वहीं खड़े-खड़े उसने जल्दी-जल्दी नाम-ब-नाम सारी पुरानी दोस्तों के क़िस्से सुनाए। कौन कहाँ है और क्या कर रही है। सलीमा ब्रिगेडियर फ़लाँ की बीवी है। चार बच्चे हैं। फ़र्खंदा का मियाँ फॉरेन सर्विस में है। उसकी बड़ी लड़की लंदन में पढ़ रही है। रेहाना फ़लाँ कॉलेज में प्रिंसिपल है। सादिया अमरीका से ढेरों डिग्रियाँ ले आई है और कराची में किसी ऊँची मुलाज़ि...
मैं ने कहा! “मैं अब्बा की बरसी कर के जाऊँगा।” बोली, “फिर तो बहुत दिन हैं।”मैं जब गांव में इधर-उधर घूम कर वापस आया तो वो अंदर एक कोठरिया में बैठी चक्की पीस रही थी। ओढ़नी उसके सर से उतर गई थी और खुले बाल चक्की के हर चक्कर के साथ उसके चेहरे को छुपा और खोल रहे थे, उसने एक टांग को पूरा फैला रखा था, नीला तहबंद उसकी पिंडलियों तक खिंच गया था। अगर ऐसी पिंडली को काट कर और शीशे के मर्तबान में रखकर ड्राइंगरूम में सजा दिया जाए तो कैसा रहे! मैंने इधर उधर देखा! अम्माँ कहीं नज़र न आईं तो मैं पंजों के बल कोठरिया तक गया।
मैं कचहरी पहुंचा। रास्ता में जितने भी नियम के दरख़्त मिले उनकी तरफ़ देखा तो ख़ानम की ख़्याली तस्वीर हीरे के बंदे पहने हुए नज़र आई। तबईत आज बेतरह ख़ुश थी, अपने को मैं ज़रा बड़े वकीलों में शुमार कर रहा था, कचहरी पहुंच कर सीधा मुंशी जी के पास पहुंचा, मुंशी जी ने मुझे देखकर नाक के नथुने फला लिए, मैंने ज़रा इधर उधर की काम की बातें पूछें तो मुँह बना बना कर जवाब ...
फ़िल्मी दुनिया में स्कैंडल आम होते हैं। आए दिन सुनने में आता है कि फ़लां ऐक्टर का फ़लां ऐक्ट्रस से तअल्लुक़ हो गया है। फ़लां ऐक्ट्रस, फ़लां ऐक्टर को छोड़ कर फ़लां डायरेक्टर के पहलू में चली गई है। क़रीब क़रीब हर ऐक्टर और हर ऐक्ट्रस के साथ कोई न कोई रोमान जल्द या बदेर वाबस्ता हो जाता है, लेकिन इस नए हीरो की ज़िंदगी जिसका मैं ज़िक्र कर रहा हूँ, इन बखेड़ों ...
मेरी उसकी बड़ी दोस्ती हो गई थी। अनपढ़ था, लेकिन जाने क्यूँ वो मेरी इतनी इज़्ज़त करता था कि अरब गली के तमाम आदमी रश्क करते थे। एक दिन सुब्ह-सवेरे, दफ़्तर जाते वक़्त मैंने चीनी के होटल में किसी से सुना कि मम्मद भाई गिरफ़्तार कर लिया गया है। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ, इसलिए कि तमाम थाने वाले उसके दोस्त थे। क्या वजह हो सकती थी... मैंने उसके आदमी से पूछा कि क्या बात हुई जो मम्मद भाई गिरफ़्तार हो गया। उसने मुझसे कहा कि इसी अरब गली में एक औरत रहती है, जिसका नाम शीरीं बाई है। उसकी एक जवान लड़की है, उसको कल एक आदमी ने ख़राब कर दिया। यानी उसकी इस्मतदरी कर दी। शीरीं बाई रोती हुई मम्मद भाई के पास आई और उससे कहा तुम यहाँ के दादा हो। मेरी बेटी से फ़लाँ आदमी ने ये बुरा किया है... ला'नत है तुम पर कि तुम घर में बैठे हो।
सरदार ज़ोर आवर सिंह हँसा, “मैं सिख हूँ... और बड़ा ग़ैरमामूली सिख।”ये कह कर उसने ग़ौर से मुझे देखा, “मंटो साहब, आप हजामत क्यों नहीं कराते। इतने बड़े बालों से आपको वहशत नहीं होती।”मैंने गर्दन पर हाथ फेरा। बाल वाक़ई बहुत बढ़े हुए थे। ग़ालिबन तीन महीने हो गए थे, जब मैंने बाल कटवाए थे। सरदार ज़ोर आवर सिंह ने बात की तो मुझे सर पर एक बोझ सा महसूस हुआ। “याद ही नहीं रहा। अब आपने कहा है तो मुझे वहशत महसूस हुई है। ख़ुदा मालूम मुझे क्यों बाल कटवाने याद नहीं रहते, ये सिलसिला है ही कुछ वाहियात। एक घंटा नाई के सामने सर न्यौढ़ाये बैठे रहो। वो अपनी ख़ुराफ़ात बकता रहे और आप मजबूरन कान समेटे सुनते रहें। फ़लां ऐक्ट्रस ऐसी है, फ़लां ऐक्ट्रस वैसी है। अमरीका ने ऐटम बम ईजाद कर लिया है। रूस के पास इसका बहुत ही तगड़ा जवाब मौजूद है। ये इटली कौन है...? और वो मुसोलिनी कहाँ गया? अब मैं अगर उससे कहूं कि जहन्नम में गया है तो वो ज़रूर पूछता कि साहब कैसे गया, किस रास्ते से गया। कौन से जहन्नम में गया।”
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