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नज़्म
मुफ़्लिसी
इक पाव सेर आने की दिल में लगा के आस
गोरी का वक़्त होवे तो गाता है वो बभास
नज़ीर अकबराबादी
शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है