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ग़ज़ल
जो गले तक आ के अटक गया जिसे तल्ख़-काम न पी सके
वो लहू का घूँट उतर गया तो सुना है शीर-ओ-शकर भी है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
यकुम मई
अब हलक़ में उन के जो खाया अटक कर जाएगा
ग़ैर-मुल्कों में न सरमाया भटक कर जाएगा