aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".drw"
फ़ातिमा हसन
born.1953
शायर
नसीम निकहत
1958 - 2023
साग़र आज़मी
1944 - 2004
बकुल देव
born.1980
पिन्हाँ
born.1957
यासीनआतिर
born.1955
तारिक़ अज़ीज़
1936 - 2021
लेखक
डॉ भावना श्रीवास्तव
born.1981
कौसर मज़हरी
born.1964
डॉक्टर आज़म
born.1963
महताब आलम
born.1972
डॉ. नरेश
born.1942
डॉ अंजना सिंह सेंगर
born.1974
याक़ूब यावर
born.1952
ज़ुबैर फ़ारूक़
born.1956
देव का जो साया था पाक हो गया आख़िररात का लिबादा भी
आता नहीं है वो तो किसी ढब से दाव मेंबनती नहीं है मिलने की उस के कोई तरह
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरीदेव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब
'जौन' उस आन तक ब-ख़ैर हूँ मैंज़िंदगी दाव चल गई होगी
लगा के दाव पे साँसों की आख़िरी पूँजीवो मुतमइन है चलो हारने का डर तो गया
ख़्वाब सिर्फ़ वही नहीं है जिस से हम नींद की हालत में गुज़रते हैं बल्कि जागते हुए भी हम ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा रंग बिरंगे ख़्वाबों में गुज़ारते हैं और उन ख़्वाबों की ताबीरों के पीछे सरगर्दां रहते हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब ऐसे ही शेरों पर मुश्तमिल है जो ख़ाब और ताबीर की कश्मकश में फंसे इन्सान की रूदाद सुनाते हैं। ये शायरी पढ़िए। इस में आपको अपने ख़्वाबों के नुक़ूश भी झिलमिलाते हुए नज़र आएँगे।
कमर क्लासिकी शायरी में एक दिल-चस्प मौज़ू है। शायरी के इस हिस्से को पढ़ कर आप शायरों के तख़य्युल की दाद दिए बग़ैर नहीं रह सकेंगे। माशूक़ की कमर की ख़ूबसूरती, बारीकी या ये कहा जाए कि उस की मादूमी को शायरों ने हैरत-अंगेज़ तरीक़ों से बरता है। हम इस मौज़ू पर कुछ अच्छे अशआर का इन्तिख़ाब पेश कर रहे हैं आप उसे पढ़िए और आम कीजिए।
फ़ोर्ट विलियम कॉलेज की अदबी ख़िदमात
डॉ. उबैदा बेगम
शोध
Homeopathic
डॉ. रेकवेग
होम्योपैथी
Dr. Allama Iqbal Ke Shikwa, Jawab-e-Shikwa Ki Nasri Tarjumani
अल्लामा इक़बाल
शायरी तन्क़ीद
Aasan Arooz
छंदशास्र
Jadeed Urdu Ghazal
डॉ. राहत बद्र
Dr. Nazeer Ahmad Ki Kahani Kuchh Meri Aur Kuchh Unki Zabani
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
गद्य/नस्र
Aap Beeti Allama Iqbal
डॉ. ख़ालिद नदीम
आत्मकथा
Practice of Medicine
डॉ. दौलत सिंह
औषधि
डॉ. बशीर बद्र की शायरी
अंजुम बाराबंकवी
संकलन
Amraz-e-Niswan
डॉ. काशी राम
तरक़्क़ी पसंद तहरीक और उर्दू अफ़्साना
डॉ. सादिक़
साहित्यिक आंदोलन
Cyclopedia Of Homeopathic Dargaz
Urdu Stage Drama
डॉ. ए.बी. अशरफ
नाटक इतिहास एवं समीक्षा
Guru Nanak Dev
गोपाल सिंह
सिख-मत
फ़रहंग-ए-कुल्लियात-ए-इक़बाल (उर्दू)
डॉ. रुख़साना बेगम
महिलाओं की रचनाएँ
पुश्त मिट्टी से लगी जिस में हमारी लोगोउसी दंगल में हमें दाव सिखाए भी गए
शौक़ का इक दाव बे-शौक़ी भी हैहम हैं उस के हुस्न के इनकारियाँ
तुम्हें हमेशा ज़रूरत पकड़ के लाती हैकभी तो आओ मिरे घर मिरे हवाले से
यही जम्हूरियत का नक़्स है जो तख्त-ए-शाही परकभी मक्कार बैठे हैं कभी ग़द्दार बैठे हैं
कई मुहय्युर-ए-इदराक देव-मालाएँहितोपदेश के क़िस्से कथा सरत-सागर
तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना लेअपने पे भरोसा है तो इक दाव लगा ले
याद आती जब कभी एहसास की नीलम-परीघर के काले देव का क़िस्सा पुराना हो गया
हवस शामिल है थोड़ी सी दुआ मेंअभी इस लौ में हल्का सा धुआँ है
देव-ए-सफ़ेद की क़सम और कोह-ए-क़ाफ़ कीबाग़-ए-इरम की और परिस्तान की क़सम
चमक उठे हैं जो दिल के कलस यहाँ से अभीगुज़र हुआ है ख़यालों की देव-दासी का
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