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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
एक रुख़्सार पे देखा है वो तिल हम ने भी
हो समरक़ंद मुक़ाबिल कि बुख़ारा कम है
बासिर सुल्तान काज़मी
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हास्य शायरी
दिल के दरमाँ के लिए आया हूँ बन कर साइल
क़ल्ब-ए-मुज़्तर के लिए आलू-बुख़ारा दे दे
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
ख़ुश-आमदीद
तुर्क-ए-शीराज़ हो तुम हाफ़िज़-ए-शीराज़ हूँ मैं
अब समरक़ंद-ओ-बुख़ारा है तुम्हारी ख़ातिर
अंजुम आज़मी
हास्य शायरी
क्या क्या नहीं था अपनी तवाज़ो' में उन के घर
छोले मटर वो आलू-बुख़ारा कि हाए हाए
मसरूर शाहजहाँपुरी
नज़्म
गंगा रो रही थी
कभी बग़दाद इस्तंबोल पहुँचा
और कभी मैं ने समरक़ंद-ओ-बुख़ारा में क़दम रक्खा
ज़ुबैर रिज़वी
नज़्म
बरसात का मौसम
वो याद है दुज़्दीदा निगाहों का इशारा
क़ुर्बां तेरी आँखों पे समरक़ंद-ओ-बुख़ारा