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नज़्म
शिकवा
अब वो अल्ताफ़ नहीं हम पे इनायात नहीं
बात ये क्या है कि पहली सी मुदारात नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रक़ीब से!
आश्ना हैं तिरे क़दमों से वो राहें जिन पर
उस की मदहोश जवानी ने इनायत की है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मीर तक़ी मीर
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विषय
इबादत
इबादत शायरी
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ग़ज़ल
तुम्हारे दिल पे अपना नाम लिक्खा हम ने देखा है
हमारी चीज़ फिर हम को इनायत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
नज़्म
ए'तिराफ़
ख़्वाब-गाहों में जगाई है जवानी मैं ने
हुस्न ने जब भी इनायत की नज़र डाली है
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
वो जो बे-रुख़ी कभी थी वही बे-रुख़ी है अब तक
मिरे हाल पर इनायत कभी थी न है न होगी