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ग़ज़ल
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
शिकवा
महफ़िल-ए-कौन-ओ-मकाँ में सहर ओ शाम फिरे
मय-ए-तौहीद को ले कर सिफ़त-ए-जाम फिरे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
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ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तिश्नगी में लब भिगो लेना भी काफ़ी है 'फ़राज़'
जाम में सहबा है या ज़हराब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है