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नज़्म
जुगनू
दिए दिखाते हैं ये भूली-भटकी रूहों को
मज़ा भी आता था मुझ को कुछ उन की बातों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
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हास्य
हम कहते हैं शहर में होंगी नौ सो लड़कियाँ कम-से-कम
ये क्या ज़िद है प्यार की माला हम ही को पहनाएँगे
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
दीपावली
निगाहों का मुक़द्दर आ के चमकाती है दीवाली
पहन कर दीप-माला नाज़ फ़रमाती है दीवाली
नज़ीर बनारसी
नज़्म
बच्चों की तौबा
अब सब्र के मीठे फल आहें भर भर कर खाते हैं
मालन को बना बैठे ख़ाला माली को रुलाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ की चमक पैकर-ए-सीमीं की दमक
दीप-माला है सर-ए-गंग-ओ-जमन क्या कहना