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नज़्म
बाद-ए-ख़िज़ाँ को क्या पर्वा है
अब या-ए-मारूफ़ पे पाँव टिका कर बैठा
एक क़दम आगे मजहूल को देख रहा हूँ
सत्यपाल आनंद
नज़्म
आईना-ख़ाने के क़ैदी से
ऐ मिरी ना-मुस्तइद मजहूल ज़ात
ऐ कि तू अज़-ख़ुद नज़र-बंद आईना-ख़ाने में है
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
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ग़ज़ल
प्यार वफ़ा का चलन न हो गर दिल से दिल को राह न हो
ऐसी रविश तो इस दुनिया को कर देगी मजहूल मियाँ
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
आँख अश्क बहाने पे है मामूर मिनल-इश्क़
और होंट हैं चुप रहने पे मजबूर मिनल-इश्क़
अम्मार यासिर मिगसी
नज़्म
अपने आप से
ज़िंदगी करने का फ़न आप से बेहतर तो यहाँ कोई नहीं जानता है
गुफ़्तुगू कितनी भी मजहूल हो माथा हमवार
ज़ाहिद डार
नज़्म
रफ़ीक़-ए-नादीदा
ख़्वाब जो आँखों में मजहूल नज़ारा हो जाए
उस के सच होने का बे-मा'नी दिलासा बे-सूद