aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "mantarii"
आदिल मंसूरी
1936 - 2008
शायर
जमील मज़हरी
1904 - 1979
आदिल रज़ा मंसूरी
born.1978
कौसर मज़हरी
born.1964
लेखक
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
अमीर रज़ा मज़हरी
born.1908
अंजुम मानपुरी
1881 - 1958
अन्जुमन मंसूरी आरज़ू
born.1977
अब्दुर्रशीद ख़ान कैफ़ी महकारी
जली अमरोहवी
1922 - 2013
अशफ़ाक़ रशीद मंसूरी
मोईन अहमद आज़ाद
born.1989
एजाज़ मानपुरी
born.1963
इरफ़ान मानपुरी
born.1965
मुसारिफ़ हुसैन मंसूरी
born.1994
मंत्री महराज को देखाउल्टे-सीधे काज को देखा
वो संतरी हो कोई कि हो कोई मंत्रीहोता है हावी सब पे ही एहसास-ए-कमतरी
उम्मीद उन से कोई लगाना ही है फ़ुज़ूलहर मंत्री की सोच है सरकार उस से है
रेस के घोड़े, सरकार के मंत्रीसिनेमा, लड़कियाँ, ऐक्टर, मस्ख़रे
किसी जलसे में इक लीडर ने ये एलान फ़रमायाहमारे मंत्री आने को हैं बेदार हो जाओ
अग्रणी आधुनिक शायार भाषा के परम्परा-विरोधी प्रयोग के लिए प्रसिद्ध अच्छे कैलीग्राफ़र और नाटक कार भी
मंत्रीمنتری
minister
जदीद नज़्म: हाली से मीराजी तक
नज़्म
जदीद अरबी अदब के इर्तिक़ा में महजरी उदबा की ख़िदमात
अशफ़ाक़ अहमद नदवी
शोध
Kitab-ul-Mansoori
अबू बकर मोहम्मद बिन ज़करिया राज़ी
मानपुरी अहवाल-ओ-अासार
इज़हार ख़िज़र
लेख
Jamil Mazhari ke Marsiye
मर्सिया
Lataif-e-Khamsa
ग़ुलाम अली
सूफ़ीवाद / रहस्यवाद
Qaazi Sanaullah Paani Pati Aur Tafseer Mazhari Ka Ta'aaruf
रिज़वानुद्दीन ख़ान
इस्लामियात
कुल्लियात-ए-जमील मज़हरी
कुल्लियात
Naqsh-e-Jameel
Allama Jameel Mazhari: Hayat Aur Nasri Takhliqat Ka Mutala
डॉ. फ़ुज़ैल अहमद
Irfan-e-Jameel
क़सीदा
IntiKhab-e-Kalam-e-Jameel Mazhari
संकलन
Dayar-e-Maghrib Mein Mahjari Urdu Adab
डॉ. इश्तियाक़ आलम आज़मी
शोध एवं समीक्षा
Kalam-e-Anjum Manpuri
शायरी
Bazdeed Aur Tabsire
आलोचना
ज़मीनअज़ीमुश्शान जुस्सा है हमारी मंत्री तुम हो
जो कुछ भी आप चाहेंगे मिल जाएगा हुज़ूरबस मंत्री से थोड़ी मुलाक़ात चाहिए
कभी दलाल कभी मंत्री के चक्कर मेंथी दौड़ धूप मिरी नौकरी के चक्कर में
लोग कह रहे हैं बड़े मंत्री आने वाले हैंचर्चा ये भी है कि बड़े दीन-दयालू हैं
उठो ये मंज़र-ए-शब-ताब देखने के लिएकि नींद शर्त नहीं ख़्वाब देखने के लिए
मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख करउस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप कोकाग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
फ़सील-ए-शहर के हर बुर्ज हर मनारे परकमाँ-ब-दस्त सितादा हैं अस्करी उस के
वो कौन था जो दिन के उजाले में खो गयाये चाँद किस को ढूँडने निकला है शाम से
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दियाउदासी की मेहनत ठिकाने लगी
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