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नज़्म
छब्बीस जनवरी
जो मुज़्तरिब थी दिल में वो आरज़ू बर आई
तकमील-ए-आरज़ू ने दिल की ख़लिश मिटाई
तिलोकचंद महरूम
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ग़ज़ल
धोई क्यूँ अश्क के तूफ़ान से लौह-ए-महफ़ूज़
सर-नविश्त अपनी ही 'नासिख़' ने मिटाई होती