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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रिश्वत
इस गिरानी में भला क्या ग़ुंचा-ए-ईमाँ खिले
जौ के दाने सख़्त हैं ताँबे के सिक्के पिल-पिले
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
नाज़ ओ अदा ओ ग़म्ज़ा निगह पंजा-ए-मिज़ा
मारें हैं एक दिल को ये पिल पिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
हास्य
ये पिल पड़ती हैं हम पर जब भी हम दफ़्तर से आते हैं
हलाकू-ख़ाँ से या चंगेज़-ख़ाँ से इन के नाते हैं
राजा मेहदी अली ख़ाँ
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ग़ज़ल
बा-कद-ए-ख़म-गश्ता हूँ रोने से नित के मैं ख़राब
मौज-ए-दरिया तोड़ते हैं जिस तरह पिल पिल के पुल
हसरत अज़ीमाबादी
कुल्लियात
'इश्क़ के दीवाने की सलासिल हिलती है तो डरें हैं हम
बिगड़े पील-ए-मस्त की सी ज़ंजीरों की झंकारें हैं
मीर तक़ी मीर
नज़्म
हुस्न-ए-क़ुबूल
गरज रहा है सियह मस्त पील पैकर-ए-अब्र
उदास कोह की चोटी पे एक तन्हा पेड़
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
साल-ए-नौ का हंगामा
है ज़ेर-दस्तियों पे ज़बरदस्तियों की ताख़्त
मोरान-ए-नीम-जान की है पील-ए-दमाँ से जंग