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ग़ज़ल
न दो दुश्नाम हम को इतनी बद-ख़़ूई से क्या हासिल
तुम्हें देना ही होगा बोसा ख़म-रूई से क्या हासिल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
भारत भूषण पन्त
ग़ज़ल
चलो गुमराहियों की रुई भर लो अपने कानों में
सुना है शैख़-साहब आज कुछ फ़रमाने वाले हैं