aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "آرام"
शिव नारायण आराम
1833 - 1898
शायर
सादिक़ा नवाब सहर
लेखक
राबिया पिन्हाँ
1906 - 1972
सय्यदा शान-ए-मेराज
नुसरत चौधरी
जहाँ आरा तबस्सुम
शबीना आरा
डॉ. रोशन आरा
अरजुमन्द आरा
अहमद आराम
अनुवादक
अंजुमन आरा अंजुम
रोशन आरा नुज़हत
जहाँ आरा हबीबुल्लाह
गुलशन आरा सैयद
कलाकार
जहाँआरा बेगम
1614 - 1681
मुज़्दा-ए-इशरत-ए-अंजाम नहीं पा सकताज़िंदगी में कभी आराम नहीं पा सकता
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँदया'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
ख़ुद-नुमाई तो नहीं शेवा-ए-अरबाब-ए-वफ़ाजिन को जलना हो वो आराम से जल जाते हैं
हाँ दवा दो मगर ये बतला दोमुझ को आराम तो नहीं होगा
थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करतेकुछ और थक गया हूँ आराम करते करते
अहमद फ़राज़ पिछली सदी के प्रख्यात शायरों में शुमार किए जाते हैं। अपने समकालीन में बेहद सादा और अद्वितीय शैली की वजह से उनकी शायरी ख़ास अहमियत की हामिल है। रेख़्ता फ़राज़ के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर पेश कर रहा है जिसने पाठकों पर जादू ही नहीं किया बल्कि उनके दिलों को मोह लिया । इन शेरों का चुनाव बहुत आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी फ़राज़ के बहुत से लोकप्रिय शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में आपकी राय का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
इश्क़-ओ-मोहब्बत में फ़िराक़, वियोग और जुदाई एक ऐसी कैफ़ियत है जिस में आशिक़-ओ-माशूक़ का चैन-ओ-सुकून छिन जाता है । उर्दू शाइरी के आशिक़-ओ-माशूक़ इस कैफ़ियत में हिज्र के ऐसे तजरबे से गुज़रते हैं, जिस का कोई अंजाम नज़र नहीं आता । बे-चैनी और बे-कली की निरंतरता उनकी क़िस्मत हो जाती है । क्लासिकी उर्दू शाइरी में इस तजरबे को ख़ूब बयान किया गया है । शाइरों ने अपने-अपने तजरबे के पेश-ए-नज़र इस विषय के नए-नए रंग तलाश किए हैं । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को जुदाई के शेरी-इज़हार का अंदाज़ा होगा ।
फूल को विषय बनाने वाली चुनिंदा शायरी में आप महसूस करेंगे कि शायरों ने फूल को किस-किस तरह से देखा और चित्रित किया है । फूल प्रकृति की सुंदरता का जीता-जागता उदाहरण है । उर्दू शायरी में फूल की ख़ूबसूरती और कोमलता को महबूब की सुंदरता का रूपक बना कर भी पेश किया गया है । उर्दू शायरी में फूल के मुरझाने को महबूब की उदासी और बे-रंग ज़िंदगी का प्रतीक भी माना गया है । फूल के साथ काँटों को भी नए-नए संदर्भों में उर्दू शायरी ने विषय बनाया है । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आप को महसूस होगा कि फूल और काँटे के माध्यम से उर्दू शायरी ने कई दिलचस्प रूपक तलाश किए हैं और उसकी व्याख्या भी की है ।
आरामآرام
comfort, relief, ease
सुख, चैन
आराम के ड्रामे
सय्यद इम्तियाज़ अली ताज
1969नाटक / ड्रामा
अाराम के ड्रामे
Urdu Mein Afsanvi Adab
जमाल आरा निज़ामी
1984
Zindagi Ki Yadein
2003कहानियाँ
Urdu Mukhtasar Afsane Ka Irtiqa
नसीम आरा
1985
The-Life Of Mughal Princess
एंड्रिया बुतेंसचयं
1931
Moin-ul-Arwah
1891जीवनी
Syed Masood Hasan Rizvi Adeeb
वसीम अारा
1990आलोचना
Rahat Ara Begum Ki Afsana Nigari
फ़हमीदा बेग़म
1993अफ़साना
Jahan Aara Begum
ज़ियाउद्दीन अहमद
1921जीवनी
Jahan Aara Begam
महबूबुर्रहमान कलीम
1906जीवनी
Sultan-e-Jamhoor Tipu Shaheed Ki Akhri Aramgah Par
शमीम तारिक़
1998
Aagha Hashr Kaashmeeri Aur Urdu Drama
1979आलोचना
Aaram Ke Darame
नाटक / ड्रामा
Sahibiya
1993महिलाओं द्वारा अनुदित
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुईलेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा 'मीर'क्या रब्त मोहब्बत से उस आराम-तलब को
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न करजिस दिन से मिले हैं दोनों का सब चैन गया आराम गया
एक एम.एससी. पास रेडियो इंजिनियर में जो मुसलमान था और दूसरे पागलों से बिल्कुल अलग थलग, बाग़ की एक ख़ास रविश पर, सारा दिन ख़ामोश टहलता रहता था, ये तब्दीली नुमूदार हुई कि उसने तमाम कपड़े उतार कर दफ़अदार के हवाले कर दिए और नंग-धड़ंग सारे बाग़ में चलना फिरना शुरू कर दिया।चैनयूट के एक मोटे मुसलमान पागल ने जो मुस्लिम लीग का सरगर्म कारकुन रह चुका था और दिन में पंद्रह सौ मर्तबा नहाया करता था, यकलख़्त ये आदत तर्क कर दी। उसका नाम मोहम्मद अली था। चुनांचे उसने एक दिन अपने जंगले में ऐलान कर दिया कि वो क़ाइद-ए-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना है। उसकी देखा देखी एक सिख पागल मास्टर तारा सिंह बन गया। क़रीब था कि इस जंगले में ख़ूनख़राबा हो जाये मगर दोनों को ख़तरनाक पागल क़रार दे कर अलाहिदा अलाहिदा बंद कर दिया गया।
हाथ रख कर जो वो पूछे दिल-ए-बेताब का हालहो भी आराम तो कह दूँ मुझे आराम नहीं
न आराम शब को न राहत सवेरेग़लाज़त में घर नालियों में बसेरे
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन की यादकट रही है ज़िंदगी आराम से
ने ताब हिज्र में है न आराम वस्ल मेंकम-बख़्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह
बग़ैर उस के अब आराम भी नहीं आतावो शख़्स जिस का मुझे नाम भी नहीं आता
ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासरआराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता
Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books