ज़रूर अमन का पैग़ाम ले गया था कहीं
परिंदा लौटा लिए पर लहू में डूबे हुए
पैग़ाम तो उन का आया है तुम शहर में 'तिश्ना' आ जाओ
सहरा है पसंदीदा हम को हम शहर में जा कर क्या करते
कब वो पैग़ाम-रसा हो कि मुझे सब्र नहीं
काकुल-ए-ख़म के लिए शे'र रक़म करता हूँ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
ज़रूर अमन का पैग़ाम ले गया था कहीं
परिंदा लौटा लिए पर लहू में डूबे हुए
पैग़ाम तो उन का आया है तुम शहर में 'तिश्ना' आ जाओ
सहरा है पसंदीदा हम को हम शहर में जा कर क्या करते
कब वो पैग़ाम-रसा हो कि मुझे सब्र नहीं
काकुल-ए-ख़म के लिए शे'र रक़म करता हूँ