aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना
पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना
बज़्म-ए-वफ़ा सजी तो अजब सिलसिले हुए
शिकवे हुए न उन से न हम से गिले हुए
दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए
याद-ए-जानाँ से कोई शाम न ख़ाली जाए
बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा
सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले
सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
''बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है''
दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'
कौन है आदमी नहीं मालूम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी
रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
बस यही होगा कि दीवाना कहेंगे अहल-ए-बज़्म
आप चुप क्यूँ हैं मिरी तर्ज़-ए-नवा ले लीजिए
साक़ी के आने की ये तमन्ना है बज़्म में
दस्त-ए-सुबू बुलंद है दस्त-ए-दुआ के साथ
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