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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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बेस्ट बज़्म शायरी

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी

बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

अल्लामा इक़बाल

अब के इस बज़्म में कुछ अपना पता भी देना

पाँव पर पाँव जो रखना तो दबा भी देना

ज़फ़र इक़बाल

बज़्म-ए-वफ़ा सजी तो अजब सिलसिले हुए

शिकवे हुए उन से हम से गिले हुए

यज़दानी जालंधरी

दिल-गिरफ़्ता ही सही बज़्म सजा ली जाए

याद-ए-जानाँ से कोई शाम ख़ाली जाए

अहमद फ़राज़

बज़्म से दूर वो गाता रहा तन्हा तन्हा

सो गया साज़ पे सर रख के सहर से पहले

मख़दूम मुहिउद्दीन

सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो

''बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है''

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

दौर-ए-हाज़िर की बज़्म में 'बेकल'

कौन है आदमी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी

रात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी

आरज़ू लखनवी

बस यही होगा कि दीवाना कहेंगे अहल-ए-बज़्म

आप चुप क्यूँ हैं मिरी तर्ज़-ए-नवा ले लीजिए

शहज़ाद अहमद

साक़ी के आने की ये तमन्ना है बज़्म में

दस्त-ए-सुबू बुलंद है दस्त-ए-दुआ के साथ

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
बोलिए