बेस्ट पॉलिटिकल शायरी
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटे
तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं
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तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे