कायनात शायरी
कायनात के साथ इन्सान का रिश्ता अजीब है; इतनी बड़ी कायनात को देखकर इन्सान अपने वजूद की अहमियत पर सवालिया निशान भी लगाता है और इस पूरी कायनात में उस हयात के गोशवारे के लिए शुक्रगुज़ार भी रहता है जिसे हम धरती कहते हैं। यहाँ कुछ मुंतख़ब अशआर पेश किए जा रहे हैं जिनमें शाइरों ने कायनात को अपना मौज़ू बनाया है
रात दिन गर्दिश में हैं लेकिन पड़ा रहता हूँ मैं
काम क्या मेरा यहाँ है सोचता रहता हूँ मैं
सिलसिला रौशन तजस्सुस का उधर मेरा भी है
ऐ सितारो उस ख़ला में इक सफ़र मेरा भी है