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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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साबिर ज़फ़र

ग़ज़ल 47

अशआर 48

शाम से पहले तिरी शाम होने दूँगा

ज़िंदगी मैं तुझे नाकाम होने दूँगा

मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है

किवाड़ रात को घर का अगर खुला रह जाए

उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा

जाने क्या लफ़्ज़ थे जो हम से तहरीर हुए

मिलूँ तो कैसे मिलूँ बे-तलब किसी से मैं

जिसे मिलूँ वो कहे मुझ से कोई काम था क्या

कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम

कुछ मेरी वहशतों ने मुझे दर-ब-दर किया

पुस्तकें 3

 

वीडियो 5

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

साबिर ज़फ़र

साबिर ज़फ़र

Tum apne gird hisaaro ka silsila rakhna

साबिर ज़फ़र

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है

साबिर ज़फ़र

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है

साबिर ज़फ़र

ऑडियो 8

कोई तो तर्क-ए-मरासिम पे वास्ता रह जाए

ख़ुमार-ए-शब में जो इक दूसरे पे गिरते हैं

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है

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