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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Aafreen Faheem Aafi's Photo'

आफ़रीन फ़हीम आफ़ी

1998 | लखनऊ, भारत

आफ़रीन फ़हीम आफ़ी

ग़ज़ल 9

अशआर 4

आरज़ू-ए-दिल-ए-बेताब मुकम्मल कर दे

ख़्वाहिश-ए-दीद-ए-सनम चश्म में बल खाती है

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दिल लुत्फ़-ए-इंतिज़ार का उम्मीदवार था

वो दस्तयाब हो गया ताख़ीर के बग़ैर

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मरने के लिए आए थे हम दश्त-ए-बला में

जीने की दु'आ दे गया दरवेश हमें क्यों

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ये और बात मुसलसल हरा रहा लेकिन

दरख़्त-ए-दिल पे कभी मौसमी समर लगे

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