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पंडित जवाहर नाथ साक़ी

1864 - 1916 | दिल्ली, भारत

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

ग़ज़ल 37

अशआर 26

फ़लक पे चाँद सितारे निकलते हैं हर शब

सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद

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हम को भरम ने बहर-ए-तवहहुम बना दिया

दरिया समझ के कूद पड़े हम सराब में

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वो माह जल्वा दिखा कर हमें हुआ रू-पोश

ये आरज़ू है कि निकले कहीं दोबारा चाँद

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क़ालिब को अपने छोड़ के मक़्लूब हो गए

क्या और कोई क़ल्ब है इस इंक़लाब में

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नहीं खुलता सबब तबस्सुम का

आज क्या कोई बोसा देंगे आप

रुबाई 7

पुस्तकें 1

 

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