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Quotes of Mushtaq Ahmad Yusufi
मर्द इश्क़-ओ-आशिक़ी सिर्फ़ एक मर्तबा करता है, दूसरी मर्तबा अय्याशी और उसके बाद निरी अय्याशी।
मूंगफली और आवारगी में ख़राबी यह है कि आदमी एक दफ़ा शुरू कर दे तो समझ में नहीं आता, ख़त्म कैसे करे।
अंग्रेज़ों के मुतअ'ल्लिक़ ये मशहूर है कि वो तबअ'न कम-गो वाक़े' हुए हैं। मेरा ख़याल है कि वो फ़क़त खाने और दाँत उखड़वाने के लिए मुँह खोलते हैं।
देगची से तहज़ीब-याफ़्ता इंसान वो काम लेता है जो क़दीम ज़माने में मे'दे से लिया जाता था। या'नी ग़िज़ा को गलाना।
अच्छे उस्ताद के अंदर एक बच्चा बैठा होता है जो हाथ उठा-उठा कर और सर हिला-हिला कर बताता जाता कि बात समझ में आई कि नहीं।
दुश्मनों के हस्ब-ए-अदावत तीन दर्जे हैं, दुश्मन दुश्मन-ए-जानी, और रिश्तेदार।
बढ़िया सिगरेट पीते ही हर शख़्स को मुआ'फ़ कर देने को जी चाहता है... ख़्वाह वो रिश्तेदार ही क्यों न हो।
पहाड़ और अधेड़ औरत दर अस्ल ऑयल पेंटिंग की तरह होते हैं, उन्हें ज़रा फ़ासले से देखना चाहिए।
अच्छे तंज़निगार तने हुए रस्से पर इतरा-इतरा कर करतब नहीं दिखाते, बल्कि ‘रक़्स ये लोग किया करते हैं तलवारों पर’
आदमी को ख़ाना अपनी बीवी के हाथ का पचता है और पान पराई के हाथ का रचता है।
जवान लड़की की एड़ी में भी आँखें होती हैं। वह चलती है तो उसे पता होता है कि पीछे कौन, कैसी नज़रों से देख रहा है।
शरीफ़ घरानों में आई हुई दुल्हन और जानवर तो मर कर ही निकलते हैं।
जिस दिन बच्चे की जेब से फ़ुज़ूल चीज़ों के बजाये पैसे बरामद हों तो समझ लेना चाहिए कि उसे बेफ़िक्री की नींद कभी नसीब नहीं होगी।
माज़ी हर शैय के गिर्द एक रूमानी हाला खींच देता है, गुज़रा हुआ दर्द भी सुहाना लगता है।
इन्सान का कोई काम बिगड़ जाए तो नाकामी से इतनी कोफ़्त नहीं होती जितनी उन बिन मांगे मश्वरों और नसीहतों से होती है जिनसे हर वो शख़्स नवाज़ता है जिसने कभी उस काम को हाथ तक नहीं लगाया।
सच तो ये है कि हुकूमतों के अ'लावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक़्क़ी से मुत्मइन नहीं होता।
उम्र-ए-तबीई तक तो सिर्फ़ कव्वे, कछुवे, गधे और वो जानवर पहुंचते हैं जिनका खाना शर्अ़न हराम है।
मर्द की पसंद वो पुल-सिरात है जिस पर कोई मोटी औरत नहीं चल सकती।
ईजाद और औलाद के लच्छन पहले ही से मालूम हो जाया करते तो दुनिया में न कोई बच्चा होने देता और न ईजाद।
थाने, हवालात या जेल में आदमी चार घंटे भी गुज़ार ले तो ज़िंदगी और हज़रत-ए-इन्सान के बारे में इतना कुछ सीख लेगा कि यूनिवर्सिटी में चालीस बरस रह कर भी नहीं सीख सकता।
आप राशी, ज़ानी और शराबी को हमेशा ख़ुश-अख़्लाक़, मिलनसार और मीठा पाएँगे। इस वास्ते कि वह नख़्वत, सख़्त गिरी और बद-मिज़ाजी अफोर्ड ही नहीं कर सकते।
बात ये है कि घरेलू बजट के जिन मसाइल पर मैं सिगरेट पी पी कर ग़ौर किया करता था, वो दर-अस्ल पैदा ही कसरत-ए-सिगरेट-नोशी से हुए थे।
जब आदमी को यह न मालूम हो कि उसकी नाल कहाँ गड़ी है और पुरखों की हड्डियां कहाँ दफ़्न हैं तो मनी प्लांट की तरह हो जाता है। जो मिट्टी के बग़ैर सिर्फ़ बोतलों में फलता-फूलता है।
बाज़-औक़ात ग़रीब को मूंछ इसलिए रखनी पड़ती है कि वक़्त-ए-ज़रूरत नीची कर के जान की अमान पाए।
जिस आसमान पर कबूतर, शफ़क़, पतंग और सितारे न हों ऐसे आसमान की तरफ़ नज़र उठा कर देखने को जी नहीं चाहता।
ग़ालिब दुनिया में वाहिद शायर है जो समझ में न आए तो दुगना मज़ा देता है।
इख़्तिसार ज़राफ़त और ज़नाना लिबास की जान है।
दाग़ तो दो ही चीज़ों पर सजता है, दिल और जवानी।
ताअन-ओ-तशनीअ से अगर दूसरों की इस्लाह हो जाती तो बारूद ईजाद करने की ज़रूरत पेश न आती।
हमारा अक़ीदा है कि जिसे माज़ी याद नहीं रहता उसकी ज़िंदगी में शायद कभी कुछ हुआ ही नहीं, लेकिन जो अपने माज़ी को याद ही नहीं करना चाहता वो यक़ीनन लोफ़र रहा होगा।
दुनिया में जहां कहीं, जो कुछ हो रहा है, वो हमारी इजाज़त के बग़ैर हो रहा है।
जितना वक़्त और रुपया बच्चों को “मुस्लमानों के साईंस पर एहसानात” रटाने में सर्फ़ किया जाता है, दसवाँ हिस्सा भी बच्चों को साईंस पढ़ाने में सर्फ़ किया जाए तो मुसलमानों पर बड़ा एहसान होगा।
घोड़े और औरत की ज़ात का अंदाज़ा उसकी लात और बात से किया जाता है।
जो शख़्स कुत्ते से भी न डरे उसकी वलदियत में शुब्हा है।
ताश के जितने भी खेल हैं वो मर्दों ने एक दूसरे को चुप रखने के लिए ईजाद किए हैं।
सच्च बोल कर ज़लील-ओ-ख़्वार होने की जगह झूठ बोल कर ज़लील-ओ-ख़्वार होना बेहतर है। आदमी को कम-अज़-कम सब्र तो आ जाता है कि किस बात की सज़ा मिली है।
दौलत, सियासत, औरत और इबादत पूरी यकसूई, सर-ता-पा सुपुर्दगी चाहती हैं। ज़रा ध्यान भटका और मंज़िल खोटी हुई।
मुसलमान लड़के हिसाब में फ़ेल होने को अपने मुसलमान होने की आसमानी दलील समझते हैं।
औरत की एड़ी हटाओ तो उसके नीचे से किसी न किसी मर्द की नाक ज़रूर निकलेगी।
जो मुल़्क जितना ग़ुर्बत-ज़दा होगा उतना ही आलू और मज़हब का चलन ज़्यादा होगा।
Gaali, Ginti, Sargoshi, Aur Ganda Lateefa To Sirf Apne Maadri Zabaan Mein Hi Maza Deta Hai.
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