अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल 42
अशआर 47
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
वगर्ना याद थीं हम को शिकायतें क्या क्या
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere